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Sunday, September 16, 2018

तुम्हे क्या पता

तुम्हे क्या पता....

खामोशियों का शोर कितना कोलाहल मचाता है,
दिल जब, हर धड़कन के साथ..
तुझे आवाज लगाता हे,
क्या तुम्हे याद भी आते हैं हम?

लौट कर आती मगर,
जब कोई सदा नहीं

तुम्हे क्या पता....

तन्हाईयों में कितने ख़्वाब जलते हैं,
और.. कितने राख होते हैं हम...
तुम्हे क्या पता...

तेरे होने का तिलस्म, रूह को चिर,
छुपे अस्कों का शैलाब ले आता  हे,
तेरे कांधो पे पनाह की उम्मीद में,
कैसे वो हर एक पल छटपटाता हे,
तुम्हे क्या पता...

ख़ाक में मिलती हैं...  तब,
कई बिना पूर्णविराम के अधूरी चिट्ठियाँ ..
हलक में दबी रह जाती हैं, कितनी ही सिसकियाँ...
तुम्हे क्या पता....

कितने जार जार होते हैं हम,

तुम्हे क्या पता....


By: Eak Musafir..
Kuch Adhure Panno se
(Krishna Kumar Vyas)

Friday, July 15, 2016

काश! यादों की भी, कोई तो उम्र होती

तन्हाइयाँ क्यूँ  रहे दहशत में हर पल इनकी
काश! इनके लिए भी,
कोई तो कैद.... कोई कब्र होती...
(by: Krishna Kumar Vyas)